टिप्पन चौकी
Friday, March 5, 2010
मैं शायर तो नहीं...पर कम भी नहीं
राह चलते सबसे मिला
हुआ नहीं किसी से गिला
लगातार चले ये सिलसिला
उसी आस में जी रहा
पानी घाट-घाट का पी रहा
ध्वज मैं कोई लहराता नहीं
यारों से मैं कतराता नहीं
यहीं सच है कि मैं हूं एक सैलानी
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