मेरी तो पैदाइश ही भोपास गैस त्रासदी के एक वर्ष बाद की है। लेकिन इतिहास के काले पन्नों से मैंने जितना इस भीषण गैस काण्ड के बारे में समझा, शायद वह काफी है। दुनिया की इस सबसे बडी गैस त्रासदी से भी बडी त्रासदी आज के परिप्रेक्ष्य में यदि कोई है तो वह है हमारी राजनीति। जिसकी बदौलत हजारों मौतों का गुनाहगार राजकीय सम्मान के साथ उसी वक़्त विदा कर दिया गया। वारेन एंडरसन के मामले में जितनी लापरवाही तत्कालीन सरकार ने बरती, उतनी ही शायद नौकरशाही ने भी। तो क्या भारतीय दण्ड संहिता की धारा 120 बी के तहत इन लोगों का कोई अपराध नहीं बनता। यदि बनता है तो फिर सरकार चुप क्यों है। आज नहीं तो कल जनता को जवाब तो देना ही होगा। चाहे सरकार दें या फिर पर्दे के पीछे से उसे चलानी वाली समानान्तर सरकार। गुनाहगार इकलौती यही सरकार नहीं है, वह सभी सरकारें इस दोष से मुक्त नहीं हो सकती, जिन्होंने इस पूरे मामले पर मौनव्रत धारण किए रखा।
वाकई यह बहुत ही गंभीर विषय हैा इस मामले में किसी भी दल ,द्वारा किसी भी स्तर पर राजनीति नहीं की जानी चाहिएा पीडितो का न्याय मिले और दोषियों को सजा यही सभी राजनैतिक दलों का ध्येय होना चाहिएा
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