Saturday, February 27, 2010
Friday, February 26, 2010
ब्लॉग के लिए खुद कम्पोज करता हु-अमर सिंह
अमर सिंह का ब्लॉग चर्चित हो चुका है .कुछ दिन पहले अमर सिंह से एक पत्रकार ने पुछा कि ब्लाग के लिए क्या बोल कर लिखवाते है , जवाब था खुद कम्पोज करता हूँ .फिर बातचीत राजनैतिक मुद्दों पर मुड़ी .पिछले विधानसभा चुनाव में वीपी सिंह के आंदोलन की कवरेज की और इस सिलसिले में राजबब्बर के साथ लम्बी यात्रा भी की .कुशीनगर हो या फिर बहराइच ,देर रात तक सभाए होती और फिर चर्चा व खाना पीना .निशाने पर तब अमर सिंह होते थे .वीपी का जनमोर्चा सिर्फ एक सीट जीत पाया क्योकि ठीक चुनाव के वक्त राजबब्बर ने राहुल गाँधी के चक्कर में करीब बीस दिन का समय कांग्रेस से चुनावी तालमेल की बातचीत में निकाल दिया .बाकि कसर छोटे दलों की सौदेबाजी से पूरी हो गई .पर वीपी के जनमोर्चा ने जो माहौल बनाया उससे मुलायम सिंह बुरी तरह हारे और मायावती सत्ता में आई .तब मै खुद लिखता था कि मायावती को सत्ता मिल चुकी है कुर्सी मिलनी बाकी है .हालाँकि ज्यादातर लोग मुलायम की दोबारा वापसी की बात कह रहे थे .इस पृष्ठभूमि में अमर सिंह से उनके भावी कार्यक्रमों पर भी चर्चा हुई .अमर सिंह ने बताया कि चौधरी अजित सिंह से बातचीत हुई है ,खासकर छोटे राज्यों को लेकर .आजमगढ़ की जनसभा में राजा बुंदेला भी आ रहे है .मैंने पूछा क्या यह मुलायम के खिलाफ वीपी जैसे अभियान की शुरुवात नहीं है खासकर जिस तरह छोटे छोटे दलों का अमर सिंह साथ लेते जा रहे है .अमर सिंह ने कहा -वीपी सिंह महान नेता थे ,उनसे तुलना नहीं हो सकती .मैंने कहा तुलना वीपी से नहीं उनकी रणनीति से कर रहा हूँ .अमर सिंह ने आगे कहा -यह जरुर कहूँगा कि जब वीपी सिंह और राजबब्बर ने मोर्चा खोला था तब मुलायम के साथ बेनी वर्मा ,आज़म खान और अमर सिंह थे और जनेश्वर मिश्र जिन्दा थे .आज मुलायम के साथ सिर्फ परिवार है .
Wednesday, February 24, 2010
Sunday, February 21, 2010
26/11 यानी हर आंख में आंसू...और दिल में दर्द के प्रायोजक हैं न्यूज़ चैनल
.....मोहन आगाशे तो कह सकता है प्रसून....लेकिन अपन किससे कहें। क्यों आपके पास पूरा न्यूज चैनल का मंच है..जो कहना है कहिये..यही काम तो बीते तीन सालों से हो रहा है। यही तो मुश्किल है.....जो हो रहा है वह दिखायी दे रहा है..लेकिन जो करवा रहा है, वही गायब है । असल में शनिवार यानी 28 नवंबर को देर शाम मुबंई में मीडिया से जुडे उन लोगो से मुलाकात हुई जो न्यूज चैनलों में कार्यक्रमों को विज्ञापनों से जोड़ने की रणनीति बनाते हैं। और 26/11 को लेकर कवायद तीन महीने पहले से चलने लगी।
लेकिन किस स्तर पर किस तरह से किस सोच के तहत कार्यक्रम और विज्ञापन जुड़ते हैं, यह मुंबई का अनुभव मेरे लिये 26/11 की घटना से भी अधिक भयावह था। और उसके बाद जो संवाद मुंबई के चंद पत्रकारों के साथ हुआ, जो मराठी और हिन्दी-अग्रेजी के राष्ट्रीय न्यूज चैनलों से जुड़े थे, वह मेरे लिये आतंकवादी कसाब से ज्यादा खतरनाक थे।
जो बातचीत में निकला वह न्यूज चैनलों के मुनाफा बनाने की गलाकाट प्रतियोगिता में किस भावना से काम होता अगर इसे सच माना जाये तो कैसे.....जरा बानगी देखिये। एक न्यूज चैनल में मार्केटिंग का दबाव था कि अगर सालस्कर...कामटे और करकरे की विधवा एक साथ न्यूज चैनल पर आ जायें और उनके जरिये तीनो के पति की मौत की खबर मिलने पर उस पहली प्रतिक्रिया का रिक्रियेशन करें और फिर इन तीनो को सूत्रधार बनाकर कार्यक्रम बनाया जाये तो इसके खासे प्रयोजक मिल सकते हैं । अगर एक घंटे का प्रोग्राम बनेगा तो 20-25 मिनट का विज्ञापन तो मार्केटिग वाले जुगाड लेंगे। यानी 10 से 15 लाख रुपये तो तय मानिये।
वहीं एक प्रोग्राम शहीद संदीप उन्नीकृष्णन के पिता के उन्नीकृष्णन के ऊपर बनाया जा सकता है । मार्केटिंग वाले प्रोग्रामिंग विभाग से और प्रोग्रामिग विभाग संपादकीय विभाग से इस बात की गांरटी चाहता था कि प्रोग्राम का मजा तभी है, जब शहीद बेटे के पिता के. उन्नीकृष्णन उसी तर्ज पर आक्रोष से छलछला जायें, जैसे बेटे की मौत पर वामपंथी मुख्यमंत्री के आंसू बहाने के लिये अपने घर आने पर उन्होंने झडक दिया था। यानी बाप के जवान बेटे को खोने का दर्द और राजनीति साधने का नेताओ के प्रयास पर यह प्रोग्राम हो।
विज्ञापन जुगाड़ने वालो का दावा था कि अगर इस प्रोग्राम के इसी स्वरुप पर संपादक ठप्पा लगा दे तो एक घंटे के प्रोग्राम के लिये ब्रांडेड कंपनियो का विज्ञापन मिल सकता है । 8 से 10 लाख की कमायी आसानी से हो सकती है। वहीं विज्ञापन जुगाड़ने वाले विभाग का मानना था कि अगर लियोपोल्ड कैफे के भीतर से कोई प्रोग्राम ठीक रात दस बजे लाइव हो जाये तो बात ही क्या है। खासकर लियोपोल्ड के पब और डांस फ्लोर दोनों जगहों पर रिपोर्टर रहें। जो एहसास कराये कि बीयर की चुस्की और डांस की मस्ती के बीच किस तरह आतंकवादी वहां गोलियों की बौछार करते हुये घुस गये। .....कैसे तेज धुन में थिरकते लोगों को इसका एहसास ही नहीं हुआ कि नीचे पब में गोलियों से लोग मारे जा रहे हैं.....यानी सबकुछ लाइव की सिचुएशन पैदा कर दी जाये तो यह प्रोग्राम अप-मार्केट हो सकता है, जिसमें विज्ञापन के जरीये दस-पन्द्रह लाख आसानी से बनाये जा सकते हैं।
और अगर लाइव करने में खर्चेा ज्यादा होगा तो हम लियोपोल्ड कैफे को समूचे प्राईम टाइम से जोड़ देंगे। जिसमें कई तरह के विज्ञापन मिल सकते हैं। यानी बीच बीच में लियोपोल्ड दिखाते रहेंगे और एक्सक्लूसिवली दस बजे। इससे खासी कमाई चैनल को हो सकती है । लेकिन मजा तभी है जब बीयर की चुस्की और डांस फ्लोर की थिरकन साथ साथ रहे। एक न्यूज चैनल लीक से हटकर कार्यक्रम बनाना चाहता था। जिसमें बच्चों की कहानी कही जाये। यानी जिनके मां-बाप 26/11 हादसे में मारे गये......उन बच्चों की रोती बिलकती आंखों में भी उसे चैनल के लिये गाढ़ी कमाई नजर आ रही थी। सुझाव यह भी था कि इस कार्यक्रम की सूत्रधार अगर देविका रोतावन हो जाये तो बात ही क्या है। देविका दस साल की वही लड़की है, जिसने कसाब को पहचाना और अदालत में जा कर गवाही भी दी।
एक चैनल चाहता था एनएसजी यानी राष्ट्रीय सुरक्षा जवानो के उन परिवारो के साथ जो 26/11 आपरेशन में शामिल हुये । खासकर जो हेलीकाप्टर से नरीमन हाऱस पर उतरे। उसमें चैनल का आईडिया यही था कि परिजनो के साथ बैठकर उस दौरान की फुटेज दिखाते हुये बच्चों या पत्नियो से पूछें कि उनके दिल पर क्या बीत रही थी जब वे हेलीकाप्टर से अपनी पतियों को उतरते हुये देख रही थीं। उन्हें लग रहा था कि वह बच जायेंगे। या फिर कुछ और.......जाहिर है इस प्रोग्राम के लिये भी लाखों की कमाई चैनल वालो ने सोच रखी थी।
26/11 किस तरह किसी उत्सव की तरह चैनलों के लिय़े था, इसका अंदाज बात से लग सकता है कि दीपावली से लेकर न्यू इयर और बीत में आने वाले क्रिसमस डे के प्रोग्राम से ज्यादा की कमाई का आंकलन 26/11 को लेकर हर चैनल में था। और मुनाफा बनाने की होड़ ने हर उस दिमाग को क्रियटिव और अंसवेदवशील बना दिया था जो कभी मीडिया को लोगों की जरुरत और सरकार पर लगाम के लिये काम करता था।
जाहिर है न्यूज चैनलों ने 26/11 को जिस तरह राष्ट्रभक्ति और आतंक के खिलाफ मुहिम से जोड़ा, उससे दिनभर कमोवेश हर चैनल को देखकर यही लगा कि अगर टीवी ना होता तो बेडरुम और ड्राइंग रुम तक 26/11 का आक्रोष और दर्द दोनों नहीं पहुंच पाते । लेकिन 26/11 की पहली बरसी के 48 घंटे बाद ही मुबंई ने यह एहसास भी करा दिया कि आर्थिक विकास का मतलब क्या है और मुंबई क्यों देश की आर्थिक राजधानी है। और कमाई के लिये कैसे न्यूज चैनल ब्रांड में तब्दील कर देते है 26/11 को। याद किजिये मुबंई हमलों के दो दिन बाद प्रधानमंत्री 28/11/2008 को देश के नाम अपने संबोधन में किस तरह डरे-सहमे से जवानों के गुण गा रहे थे। वही प्रधानमंत्री मुंबई हमलों की पहली बरसी पर देश में नहीं थे बल्कि अमेरिका में थे और घटना के एक साल बाद 25/11/2009 को अमेरिकी जमीन से ही पाकिस्तान को चुनौती दे रहे थे कि गुनाहगारो को बख्शा नहीं जायेगा। तो यही है 26/11 की हकीकत, जिसमें टैक्सी ड्राइवर मोहन आगाशे का अपना दर्द है.......न्यूज चैनलो की अपनी पूंजी भक्ति और प्रधानमंत्री की जज्बे को जिलाने की अपनी राष्ट्र भक्ति। आपको जो ठीक लगे उसे अपना लीजिये ।
पत्रकार जगत की कलई खोलता यह आलेख हे पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने
लेकिन किस स्तर पर किस तरह से किस सोच के तहत कार्यक्रम और विज्ञापन जुड़ते हैं, यह मुंबई का अनुभव मेरे लिये 26/11 की घटना से भी अधिक भयावह था। और उसके बाद जो संवाद मुंबई के चंद पत्रकारों के साथ हुआ, जो मराठी और हिन्दी-अग्रेजी के राष्ट्रीय न्यूज चैनलों से जुड़े थे, वह मेरे लिये आतंकवादी कसाब से ज्यादा खतरनाक थे।
जो बातचीत में निकला वह न्यूज चैनलों के मुनाफा बनाने की गलाकाट प्रतियोगिता में किस भावना से काम होता अगर इसे सच माना जाये तो कैसे.....जरा बानगी देखिये। एक न्यूज चैनल में मार्केटिंग का दबाव था कि अगर सालस्कर...कामटे और करकरे की विधवा एक साथ न्यूज चैनल पर आ जायें और उनके जरिये तीनो के पति की मौत की खबर मिलने पर उस पहली प्रतिक्रिया का रिक्रियेशन करें और फिर इन तीनो को सूत्रधार बनाकर कार्यक्रम बनाया जाये तो इसके खासे प्रयोजक मिल सकते हैं । अगर एक घंटे का प्रोग्राम बनेगा तो 20-25 मिनट का विज्ञापन तो मार्केटिग वाले जुगाड लेंगे। यानी 10 से 15 लाख रुपये तो तय मानिये।
वहीं एक प्रोग्राम शहीद संदीप उन्नीकृष्णन के पिता के उन्नीकृष्णन के ऊपर बनाया जा सकता है । मार्केटिंग वाले प्रोग्रामिंग विभाग से और प्रोग्रामिग विभाग संपादकीय विभाग से इस बात की गांरटी चाहता था कि प्रोग्राम का मजा तभी है, जब शहीद बेटे के पिता के. उन्नीकृष्णन उसी तर्ज पर आक्रोष से छलछला जायें, जैसे बेटे की मौत पर वामपंथी मुख्यमंत्री के आंसू बहाने के लिये अपने घर आने पर उन्होंने झडक दिया था। यानी बाप के जवान बेटे को खोने का दर्द और राजनीति साधने का नेताओ के प्रयास पर यह प्रोग्राम हो।
विज्ञापन जुगाड़ने वालो का दावा था कि अगर इस प्रोग्राम के इसी स्वरुप पर संपादक ठप्पा लगा दे तो एक घंटे के प्रोग्राम के लिये ब्रांडेड कंपनियो का विज्ञापन मिल सकता है । 8 से 10 लाख की कमायी आसानी से हो सकती है। वहीं विज्ञापन जुगाड़ने वाले विभाग का मानना था कि अगर लियोपोल्ड कैफे के भीतर से कोई प्रोग्राम ठीक रात दस बजे लाइव हो जाये तो बात ही क्या है। खासकर लियोपोल्ड के पब और डांस फ्लोर दोनों जगहों पर रिपोर्टर रहें। जो एहसास कराये कि बीयर की चुस्की और डांस की मस्ती के बीच किस तरह आतंकवादी वहां गोलियों की बौछार करते हुये घुस गये। .....कैसे तेज धुन में थिरकते लोगों को इसका एहसास ही नहीं हुआ कि नीचे पब में गोलियों से लोग मारे जा रहे हैं.....यानी सबकुछ लाइव की सिचुएशन पैदा कर दी जाये तो यह प्रोग्राम अप-मार्केट हो सकता है, जिसमें विज्ञापन के जरीये दस-पन्द्रह लाख आसानी से बनाये जा सकते हैं।
और अगर लाइव करने में खर्चेा ज्यादा होगा तो हम लियोपोल्ड कैफे को समूचे प्राईम टाइम से जोड़ देंगे। जिसमें कई तरह के विज्ञापन मिल सकते हैं। यानी बीच बीच में लियोपोल्ड दिखाते रहेंगे और एक्सक्लूसिवली दस बजे। इससे खासी कमाई चैनल को हो सकती है । लेकिन मजा तभी है जब बीयर की चुस्की और डांस फ्लोर की थिरकन साथ साथ रहे। एक न्यूज चैनल लीक से हटकर कार्यक्रम बनाना चाहता था। जिसमें बच्चों की कहानी कही जाये। यानी जिनके मां-बाप 26/11 हादसे में मारे गये......उन बच्चों की रोती बिलकती आंखों में भी उसे चैनल के लिये गाढ़ी कमाई नजर आ रही थी। सुझाव यह भी था कि इस कार्यक्रम की सूत्रधार अगर देविका रोतावन हो जाये तो बात ही क्या है। देविका दस साल की वही लड़की है, जिसने कसाब को पहचाना और अदालत में जा कर गवाही भी दी।
एक चैनल चाहता था एनएसजी यानी राष्ट्रीय सुरक्षा जवानो के उन परिवारो के साथ जो 26/11 आपरेशन में शामिल हुये । खासकर जो हेलीकाप्टर से नरीमन हाऱस पर उतरे। उसमें चैनल का आईडिया यही था कि परिजनो के साथ बैठकर उस दौरान की फुटेज दिखाते हुये बच्चों या पत्नियो से पूछें कि उनके दिल पर क्या बीत रही थी जब वे हेलीकाप्टर से अपनी पतियों को उतरते हुये देख रही थीं। उन्हें लग रहा था कि वह बच जायेंगे। या फिर कुछ और.......जाहिर है इस प्रोग्राम के लिये भी लाखों की कमाई चैनल वालो ने सोच रखी थी।
26/11 किस तरह किसी उत्सव की तरह चैनलों के लिय़े था, इसका अंदाज बात से लग सकता है कि दीपावली से लेकर न्यू इयर और बीत में आने वाले क्रिसमस डे के प्रोग्राम से ज्यादा की कमाई का आंकलन 26/11 को लेकर हर चैनल में था। और मुनाफा बनाने की होड़ ने हर उस दिमाग को क्रियटिव और अंसवेदवशील बना दिया था जो कभी मीडिया को लोगों की जरुरत और सरकार पर लगाम के लिये काम करता था।
जाहिर है न्यूज चैनलों ने 26/11 को जिस तरह राष्ट्रभक्ति और आतंक के खिलाफ मुहिम से जोड़ा, उससे दिनभर कमोवेश हर चैनल को देखकर यही लगा कि अगर टीवी ना होता तो बेडरुम और ड्राइंग रुम तक 26/11 का आक्रोष और दर्द दोनों नहीं पहुंच पाते । लेकिन 26/11 की पहली बरसी के 48 घंटे बाद ही मुबंई ने यह एहसास भी करा दिया कि आर्थिक विकास का मतलब क्या है और मुंबई क्यों देश की आर्थिक राजधानी है। और कमाई के लिये कैसे न्यूज चैनल ब्रांड में तब्दील कर देते है 26/11 को। याद किजिये मुबंई हमलों के दो दिन बाद प्रधानमंत्री 28/11/2008 को देश के नाम अपने संबोधन में किस तरह डरे-सहमे से जवानों के गुण गा रहे थे। वही प्रधानमंत्री मुंबई हमलों की पहली बरसी पर देश में नहीं थे बल्कि अमेरिका में थे और घटना के एक साल बाद 25/11/2009 को अमेरिकी जमीन से ही पाकिस्तान को चुनौती दे रहे थे कि गुनाहगारो को बख्शा नहीं जायेगा। तो यही है 26/11 की हकीकत, जिसमें टैक्सी ड्राइवर मोहन आगाशे का अपना दर्द है.......न्यूज चैनलो की अपनी पूंजी भक्ति और प्रधानमंत्री की जज्बे को जिलाने की अपनी राष्ट्र भक्ति। आपको जो ठीक लगे उसे अपना लीजिये ।
पत्रकार जगत की कलई खोलता यह आलेख हे पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने
रिश्ते तार तार
कोटा। रिश्तों पर एक सामाजिक बंदिश इतनी भारी पड़ गई कि भाई ने अपनी बहन के शव को छूने तक की जेहमत नहीं उठाई।जगपुरा निवासी मृतका मंजू बाई के मामले में जो कहानी सामने आई वह हर किसी को भीतर तक कचौट गई। मृतका के परिजनों ने उसका शव लेने तो क्या छूने से भी इनकार कर दिया।रंगबाड़ी स्थित न्यू मेडिकल कॉलेज में महिला की मौत के बाद जब पुलिस ने जांच शुरू की तो पता चला कि बरसों पहले मृतका हेमराज के नाते चली गई थी। बाद में हेमराज की भी मृत्यु हो गई और इसी बीच, उसके एक बच्चा भी हुआ। इस पर बिरादरी के लोगों ने उसे जाति बदर कर दिया। बिरादरी के इस फरमान को लांघने की हिम्मत मृतका के भाई व अन्य परिजनों ने नहीं दिखाई। जब शव लेने के लिए पुलिस ने उनसे सम्पर्क साधा तो उन्होंने कहा कि यदि वे उसका शव ले आएंगे तो उन्हें भी जाति से बाहर कर दिया जाएगा। परिजनों के नहीं आने पर शनिवार को शव का पोस्टमार्टम कराकर कर्मयोगी संस्था को सौंप दिया गया।फोटो दिखाया और कहा, "यह है मेरी मां..."-राकेश वह अभागा दस वर्षीय मासूम है, जिसे न बाप का प्यार मिला और परिजनों का दुलार। इस जहां में यदि उसका कोई था तो वह थी उसकी मां। मां की भी क्षय रोग से मृत्यु हो गई। अब धरती उसका बिछौना और आसमां ही उसकी छत है। श्रीनाथपुरम् इलाके की एक कच्ची टापरी में करीब ढाई माह से वह अपनी मां के साथ रह रहा था। शनिवार को यह संवाददाता टापरी पर पहुंचा तो राकेश बाहर खड़ा था। पिता के बारे में तो उसे कुछ पता नहीं। मां के बारे में पूछा तो उसने जेब से एक फटा सा पर्स निकाला और उसमें से एक फोटो निकालते हुए कहा "यह है मेरी मां...।" इस बच्चे को पुलिस ने डेरा सच्चा सौदा के सेवादार राजेन्द नागर और श्रीनाथपुरम् की ही एक टापरी में रहने वाले पप्पू को संभलाया है।"हमने परिजनों से सम्पर्क किया था, लेकिन उन्होंने शव लेने से मना कर दिया। उन्होंने बताया कि महिला जाति से बाहर है और उसका शव लेंगे तो हमें भी जाति बदर कर दिया जाएगा। इस पर पोस्टमार्टम के बाद शव को अंतिम संस्कार के लिए कर्मयोगी संस्था को सौंप दिया गया।"-राधाकृष्ण, जांच अधिकारी, महावीर नगर थाना"बच्चे को अनाथाश्रम में रखेंगे। वहां उसके खाने-पीने और रहने की व्यवस्था ठीक से हो जाएगी। यदि वह चाहेगा तो उसे पढ़ाने का भी प्रयास रहेगा।"-राजेन्द्र नागर, सेवादार, डेरा सच्चा सौदा
Saturday, February 20, 2010
जॉर्ज फर्नाडिज लापता!
काफी समय से गम्भीर रूप से बीमार चल रहे पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नाडिज अचानक गायब हो गए हैं। जॉर्ज के एक करीबी मित्र का आरोप है कि जॉर्ज से काफी समय से अलग रह रही पत्नी व पुत्र उनको अज्ञात स्थान पर ले गए हैं। जॉर्ज के दिल्ली स्थित आवास का मुख्य दरवाजा बंद है। और किसी को भी नहीं पता है कि जॉर्ज कहां रह रहे हैं। जॉर्ज के मित्र अजय सिंह का कहना है कि जॉर्ज से काफी समय से अलग रह रही उनकी पत्नी लैला का कहना है कि वह जॉर्ज का बेहतर इलाज कराने के लिए उनको कहीं ले गई है। लेकिन हमें उनका कोई अता पता नहीं है। इस बीच जॉर्ज के एक और करीबी मित्रों ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एम.एन. वैंकटचलैया के नेतृत्व में जॉर्ज के बारे में जानकारी के लिए हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है। जॉर्ज के मित्र अजय सिंह ने कहा कि यह बड़े दुख की बात है कि लाखों लोगों की आवाज को बुलंद करने वाले जॉर्ज आज खुद अपनी तकलीफ का इजहार नहीं कर पा रहे हैं। जॉर्ज अल्जाइमर बीमारी से पीडित हैं। वे अपनी याददाश्त खो चुके हैं और इसी का उनकी पत्नी अनुचित लाभ उठा रही है। हम उनके बारे में जानना चाहते हैं। उल्लेखनीय है कि जॉर्ज की बीमारी की खबर मिलते ही लैला व सील करीब दो दशक बाद उनका हालचाल लेने के लिए हाल ही में दिल्ली पहुंचे थे। उनका कहना है कि जॉर्ज के भाई व मित्र 25 करोड़ की रकम को हड़पना चाहते हैं। हालांकि जॉर्ज के चारों भाईयों ने इन आरोपों को खारिज किया है।
चंदनमल बैद नहीं रहे
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री चंदनमल बैद का आज निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे। उनके निधन की सूचना मिलते ही राजनीतिक हलकों में शोक की लहर दौड़ गई। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। लम्बे समय तक विभिन्न विभागों में मंत्री रहे बैद कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी रहे। कल सुबह चांदपोल शमशान घाट में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।बैद पहली विधानसभा 1952 में विधायक चुने गए थे। 1952, 1957, 1962 और 1972 में सरदारशहर से जबकि 1980 और 1990 से तारानगर से विधायक चुने गए। पहली बार बैद जयनारायण व्यास की सरकार में उपमंत्री बने। इसके बाद वे सुखाडिया, बरकतुल्ला खां हरदेव जोशी, जगन्नाथ पहाडिया और गहलोत सरकार में भी मंत्री रहे। उन्होंने शिक्षा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य वित्त योजना आबकारी, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी ऊर्जाü, इंदिरा गांधी नहर तथा सिचिंत क्षेत्र जैसे महत्वपूर्व विभोगों का सफलतापूर्वक दायित्व संभाला। बैद का जन्म 27 अक्टूबर 1922 में सरदारशहर में हुआ। एमए तथा एलएलबी तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद बैद ने कांग्रेस के माध्यम से सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। उल्लेखनीय है कि बैद के पुत्र सी एस बैद भी तारानगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे हैं।
थोड़ी थोड़ी पिया करो
बिल्टी साबुन की, निकली शराब
कोटा। आबकारी निरोधक दल ने गुरूवार देर रात बारां रोड पर नाकाबंदी के दौरान एक ट्रक से 890 पेटी अवैध अंग्रेजी शराब बरामद की। यह शराब मध्यप्रदेश से तस्करी कर सीमावर्ती जिले बारां के रास्ते राजस्थान में लाई जा रही थी। इसकी कीमत साढ़े 21 लाख रूपए आंकी गई है।
मुखबिर की सूचना पर उप निदेशक प्रवर्तन सुरेन्द्र सिंह भाटी ने सहायक निदेशक प्रवर्तन आशीष भार्गव व नरेन्द्र मीणा के नेतृत्व में एक टीम गठित कर बारां रोड पर मानपुरा गांव के आगे नाकाबंदी शुरू कराई। शक होने पर एक ट्रक को रोककर तलाशी ली तो ट्रक से 280 पेटी रम और 610 पेटी जिन की बरामद की गई।
यह शराब खरगोन (मध्यप्रदेश) में निर्मित और केवल अरूणाचल प्रदेश में बिक्री योग्य है। ट्रक व शराब को जब्त कर चालक भिलाय (छत्तीसगढ़) निवासी गुरूवेल सिंह व उसके साथ ट्रक में मौजूद कुन्दू सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों को न्यायालय में पेश कर चार दिन के रिमाण्ड पर सौंपा गया है।
पहले भी करते रहे तस्करी
पूछताछ में चालक ने बताया कि यह माल इंदौर निवासी लड्डू भैय्या उर्फ लड्डू सेठ ने भेजा था। ट्रक बड़गांव के निकट खड़ा करना था। वहां से माल दूसरे लोगों को "ठिकाने" लगाना था। पुलिस ने लड्डू सेठ व ट्रक मालिक को भी प्रकरण में अभियुक्त बनाया है। गिरफ्तार चालक ने पहले भी दो-तीन बार इस तरीके से माल लाना कबूला है।
फर्जी बिल्टियां बरामद
सहायक निदेशक भार्गव ने बताया कि ट्रक रोककर जब चालक से पूछा गया तो उसने ट्रक में साबुन की पेटियां होना बताई। उसने पारसमल एण्ड कम्पनी नांदेड़ (महाराष्ट्र) का 925 पेटी साबुन का बिल भी दिखाया। चालक से सम्राट रोडलाइंस, कटारिया कॉम्पलेक्स, देवास नाका, इंदौर की दो दर्जन बिल्टियां भी बरामद की गई है। ऎसे में यह माना जा रहा है कि अवैध शराब को ठिकाने तक पहुंचाने के लिए इन बिल्टियों का सहारा लिया जाता था।
एक मामला, चार राज्य
शराब का निर्माण स्थल और उसे भेजने वाला तस्कर मध्यप्रदेश का, बिक्री के लिए चुना राजस्थान। बरामद शराब अरूणाचल प्रदेश में बिक्री के लिए थी और शराब परिवहन कर रहा ट्रक निकला गुजरात का। एक बार तो खुद आबकारी निरोधक दल के अधिकारी भी चौंक गए कि शराब तस्कर कितना शातिर है।
कोटा। आबकारी निरोधक दल ने गुरूवार देर रात बारां रोड पर नाकाबंदी के दौरान एक ट्रक से 890 पेटी अवैध अंग्रेजी शराब बरामद की। यह शराब मध्यप्रदेश से तस्करी कर सीमावर्ती जिले बारां के रास्ते राजस्थान में लाई जा रही थी। इसकी कीमत साढ़े 21 लाख रूपए आंकी गई है।
मुखबिर की सूचना पर उप निदेशक प्रवर्तन सुरेन्द्र सिंह भाटी ने सहायक निदेशक प्रवर्तन आशीष भार्गव व नरेन्द्र मीणा के नेतृत्व में एक टीम गठित कर बारां रोड पर मानपुरा गांव के आगे नाकाबंदी शुरू कराई। शक होने पर एक ट्रक को रोककर तलाशी ली तो ट्रक से 280 पेटी रम और 610 पेटी जिन की बरामद की गई।
यह शराब खरगोन (मध्यप्रदेश) में निर्मित और केवल अरूणाचल प्रदेश में बिक्री योग्य है। ट्रक व शराब को जब्त कर चालक भिलाय (छत्तीसगढ़) निवासी गुरूवेल सिंह व उसके साथ ट्रक में मौजूद कुन्दू सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। दोनों को न्यायालय में पेश कर चार दिन के रिमाण्ड पर सौंपा गया है।
पहले भी करते रहे तस्करी
पूछताछ में चालक ने बताया कि यह माल इंदौर निवासी लड्डू भैय्या उर्फ लड्डू सेठ ने भेजा था। ट्रक बड़गांव के निकट खड़ा करना था। वहां से माल दूसरे लोगों को "ठिकाने" लगाना था। पुलिस ने लड्डू सेठ व ट्रक मालिक को भी प्रकरण में अभियुक्त बनाया है। गिरफ्तार चालक ने पहले भी दो-तीन बार इस तरीके से माल लाना कबूला है।
फर्जी बिल्टियां बरामद
सहायक निदेशक भार्गव ने बताया कि ट्रक रोककर जब चालक से पूछा गया तो उसने ट्रक में साबुन की पेटियां होना बताई। उसने पारसमल एण्ड कम्पनी नांदेड़ (महाराष्ट्र) का 925 पेटी साबुन का बिल भी दिखाया। चालक से सम्राट रोडलाइंस, कटारिया कॉम्पलेक्स, देवास नाका, इंदौर की दो दर्जन बिल्टियां भी बरामद की गई है। ऎसे में यह माना जा रहा है कि अवैध शराब को ठिकाने तक पहुंचाने के लिए इन बिल्टियों का सहारा लिया जाता था।
एक मामला, चार राज्य
शराब का निर्माण स्थल और उसे भेजने वाला तस्कर मध्यप्रदेश का, बिक्री के लिए चुना राजस्थान। बरामद शराब अरूणाचल प्रदेश में बिक्री के लिए थी और शराब परिवहन कर रहा ट्रक निकला गुजरात का। एक बार तो खुद आबकारी निरोधक दल के अधिकारी भी चौंक गए कि शराब तस्कर कितना शातिर है।
अपने ही करा रहे जासूसी
अब रोडवेज "फ्लाइंग" (गश्ती दल) की भी "जासूसी" की जाने लगी है। जासूसी कराने वालों ने सूचना तंत्र मजबूत बनाने का इन दिनों एक नया तरीका ढूंढा है। अब "मुखबिरों" को वाहन मुहैया कराए जा रहे हैं, जो "फ्लाइंग" का पीछा करते हैं। इसका असर यह हुआ कि मुख्यालय से "फ्लाइंग" की रवानगी के साथ ही पूरा रूट "अलर्ट" हो जाता है। ताजा मामला झालावाड़ जिले का है, जहां एक निजी वैन पूरे मार्ग में "फ्लाइंग" का पीछा करती रही।"फ्लाइंग" आगे, मुखबिर पीछेसूत्रों ने बताया कि 10 फरवरी को झालावाड़ जिले के विभिन्न मार्गो पर बसों का निरीक्षण करने गई जोनल "फ्लाइंग" को चांदखेड़ी (खानपुर) चौराहे पर एक वैन मिली। यह वैन पूरे रूट पर "फ्लाइंग" का पीछा करती रही। अधिकारियों ने वैन चालक को छकाने के लिए कार को खानपुर कस्बे में ले लिया तो वह वहां तक भी आ धमकी। "फ्लाइंग" इकलेरा की ओर निकली तो वहां पहले से एक मोटरसाइकिल चालक तैयार मिला। नतीजतन इस रूट पर मिली तीनों बसों में एक भी यात्री बगैर टिकट नहीं मिला। "फ्लाइंग" ने अपनी रिपोर्ट में उक्त वैन के नम्बर भी दर्ज किए हैं।लाल रंग की कारइससे पहले जनवरी में चले सात दिवसीय विशेष अभियान में भी गश्ती दल एक लाल रंग की कार से खासा त्रस्त रहा। इस गाड़ी ने गश्ती दल का पीछा करते हुए कमोबेश संभाग के सभी जिले नाप डाले। रोडवेज के अघिकारी खुद यह सवाल उठाते हैं कि इस सूचना तंत्र के लिए रकम कौन खर्च करता होगा? मैं और यातायात निरीक्षक झालावाड़ जिले में चैकिंग के लिए गए थे। वहां एक वैन हमारा पीछा करती रही। वैन के नम्बर अधिकारियों को बताए हैं।"-सोहनलाल यादव, जांच अघिकारी, रोडवेज, कोटा डिपो
और खाली हो गई जेल
राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के जेल में आज सुबह 23 कैदी फरार हो गए हैं। सुबह पौने सात बजे करीब दो दर्जन कैदियों ने संतरी की राइफल छीन ली और राइफल से गेट पर तैनात हेडकांस्टेबल सहित दो जेलकर्मियों की धुनाई कर फरार हो गए। जेल से एक साथ 23 कैदियों के फरार होने की सूचना मिलने पर पुलिस और प्रशासन में हड़कंप मच गया। प्रदेश की किसी भी जेल से इतनी बड़ी तादाद में एक साथ कैदियों के फरार हो जाने की यह पहली घटना है। फरार कैदियों की तलाश में राज्य भर में हाइ अलर्ट जारी किया गया है। फरार कैदियों में चार हत्या और आठ कैदी मादक पदार्थ के कुख्यात तस्कर बताए गए हैं। मौके पर जिला कलक्टर आरूषि मलिक और पुलिस अधीक्षक गिरिराज मीणा सहित अन्य अधिकारी पहुंच गए हैं। पुलिस को अभी तक फरार कैदियों का सुराग नहीं मिला है।
भागने के लिए चाय का समय चुनापुलिस अधीक्षक मीणा ने बताया कि चित्तौड़ जिला कारागृह में सुबह करीब सात बजे रोज की तरह जेल प्रहरी दूध-चाय के लिए कैदियों के बैरक के पास गया, तभी कुछ कैदी बैरक का लॉक खोल कर बाहर आ गए। कैदियों को बैरक के बाहर देख कर संतरी सोहनलाल ने उनकी तरफ राइफल तानी। इस पर कैदियों ने सोहनलाल पर हमला कर दिया और उसकी राइफल छीन ली। कैदियों ने राइफल के बट से सोहनलाल और हेडकांस्टेबल दिनेश श्रीमाली की धुनाई कर दी।संतरी को बैरक में डालाबताया जाता है कि कैदियों ने सोहनलाल और दिनेश को बैरक में बंद कर दिया और एक-एक कर जेल से 23 कैदी बाहर निकल गए। कैदी संतरी की राइफल भी अपने साथ ले गए। कैदी जेल के बाहर खड़ी सफेद टवेरा गाड़ी और दूधिये की लूना ले भागे। कैदियों की तलाश में आस-पास के जिलो में कड़ी नाकाबंदी कर दी गई है। उल्लेखनीय है कि जेल में कुल 276 कैदी मौजूद हैं और उनकी सुरक्षा के लिए मात्र सात सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी जेल प्रशासन पर सवाल खड़े करती है। डीजी भी रवाना स्थिति का जायजा लेने के लिए जेल डीजी ओमेंद्र भारद्वाज भी गुरूवार सुबह जयपुर से चित्तौड़गढ़ रवाना हो गए। सुनियोजित फरारी जिला कारागृह के जिस बैरक से कैदी फरार हुए हैं, उस बैरक के गेट का लॉक करीब एक सप्ताह से खराब था। इस मामले में संतरी ने कारागृह प्रशासन को सूचना भी दे दी थी। इसके बावजूद बैरक के लॉक को ठीक नहीं करवाया गया। माना जा रहा है कि जिस टवेरा गाड़ी से कैदी भागे, उसका इंतजाम भी कैदियों ने जेल के बाहर मौजूद अपने साथियों की मदद से किया था।नंगे पैर भागे बताया जाता है कि जेल से फरार सभी कैदी नंगे पैर थे। संतरी और हेडकांस्टेबल पर हमला करने के बाद सभी कैदी जेल से नंगे पैर ही फरार हो गए। वाह ! रिकॉर्ड ही बनवा दियाजयपुर। चित्तौडगढ़ जेल से भागे 23 कैदियों ने जेल विभाग के लिए नया इतिहास रचा है। इससे पहले वर्ष 1984-85 में बांसवाड़ा की जिला जेल से एक साथ 22 कैदी फरार हुए थे, जिसमें कैदियों को लीडर एक कुख्यात डकैत था। हालांकि बाद में पुलिस ने उसे धर दबोचा था, लेकिन यही कुख्यात डकैत 1987 में एक बार फिर सात कैदियों के साथ जेल की सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए फरार हो गया और आज तक नहीं लौटा। उसके बाद 2006 में बीलाड़ा जेल से एक साथ सात कैदी जेल की दीवार में छेद कर फरार हो गए थे। इसी तरह 2007 में निम्बाहेड़ा जेल से भी 12 कैदी संतरी और जेलरों को बेहोशी की दवाइयां देकर फरार होने में कामयाब रहे।
90 प्रतिशत से ज्यादा जेलें ओवर फ्लो राज्य की जेलों की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य की आठ सेंट्रल जेलों, 25 से ज्यादा जिला जेलों और 16 से ज्यादा सब जेलों में से 90 प्रतिशत जेलों में निर्धारित संख्या से काफी अधिक कैदियों को रखा गया है। राजस्थान जेल के रिकार्ड्स पर नजर दौड़ाई जाए तो आठ सेंटल जेलों में महिला और पुरूष कैदियों को मिलाकर मात्र 7970 कैदी रखने की क्षमता है। जबकि इस समय सेंट्रल जेलों में 12300 से भी ज्यादा ठूसें गए हैं। वहीं राज्य की 25 जिला जेलों और 17 सब जेलों में 5889 कैदी रखने की क्षमता है, इसके उलट इस समय इन जगहों पर 10100 कैदी ठूंसे गए हैं। इतना ही नहीं महिला जेल में रहने वाली कैदियों के बच्चों के बारे में आंकड़ों में जानकारी नही दी गई है।
भागने के लिए चाय का समय चुनापुलिस अधीक्षक मीणा ने बताया कि चित्तौड़ जिला कारागृह में सुबह करीब सात बजे रोज की तरह जेल प्रहरी दूध-चाय के लिए कैदियों के बैरक के पास गया, तभी कुछ कैदी बैरक का लॉक खोल कर बाहर आ गए। कैदियों को बैरक के बाहर देख कर संतरी सोहनलाल ने उनकी तरफ राइफल तानी। इस पर कैदियों ने सोहनलाल पर हमला कर दिया और उसकी राइफल छीन ली। कैदियों ने राइफल के बट से सोहनलाल और हेडकांस्टेबल दिनेश श्रीमाली की धुनाई कर दी।संतरी को बैरक में डालाबताया जाता है कि कैदियों ने सोहनलाल और दिनेश को बैरक में बंद कर दिया और एक-एक कर जेल से 23 कैदी बाहर निकल गए। कैदी संतरी की राइफल भी अपने साथ ले गए। कैदी जेल के बाहर खड़ी सफेद टवेरा गाड़ी और दूधिये की लूना ले भागे। कैदियों की तलाश में आस-पास के जिलो में कड़ी नाकाबंदी कर दी गई है। उल्लेखनीय है कि जेल में कुल 276 कैदी मौजूद हैं और उनकी सुरक्षा के लिए मात्र सात सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी जेल प्रशासन पर सवाल खड़े करती है। डीजी भी रवाना स्थिति का जायजा लेने के लिए जेल डीजी ओमेंद्र भारद्वाज भी गुरूवार सुबह जयपुर से चित्तौड़गढ़ रवाना हो गए। सुनियोजित फरारी जिला कारागृह के जिस बैरक से कैदी फरार हुए हैं, उस बैरक के गेट का लॉक करीब एक सप्ताह से खराब था। इस मामले में संतरी ने कारागृह प्रशासन को सूचना भी दे दी थी। इसके बावजूद बैरक के लॉक को ठीक नहीं करवाया गया। माना जा रहा है कि जिस टवेरा गाड़ी से कैदी भागे, उसका इंतजाम भी कैदियों ने जेल के बाहर मौजूद अपने साथियों की मदद से किया था।नंगे पैर भागे बताया जाता है कि जेल से फरार सभी कैदी नंगे पैर थे। संतरी और हेडकांस्टेबल पर हमला करने के बाद सभी कैदी जेल से नंगे पैर ही फरार हो गए। वाह ! रिकॉर्ड ही बनवा दियाजयपुर। चित्तौडगढ़ जेल से भागे 23 कैदियों ने जेल विभाग के लिए नया इतिहास रचा है। इससे पहले वर्ष 1984-85 में बांसवाड़ा की जिला जेल से एक साथ 22 कैदी फरार हुए थे, जिसमें कैदियों को लीडर एक कुख्यात डकैत था। हालांकि बाद में पुलिस ने उसे धर दबोचा था, लेकिन यही कुख्यात डकैत 1987 में एक बार फिर सात कैदियों के साथ जेल की सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए फरार हो गया और आज तक नहीं लौटा। उसके बाद 2006 में बीलाड़ा जेल से एक साथ सात कैदी जेल की दीवार में छेद कर फरार हो गए थे। इसी तरह 2007 में निम्बाहेड़ा जेल से भी 12 कैदी संतरी और जेलरों को बेहोशी की दवाइयां देकर फरार होने में कामयाब रहे।
90 प्रतिशत से ज्यादा जेलें ओवर फ्लो राज्य की जेलों की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राज्य की आठ सेंट्रल जेलों, 25 से ज्यादा जिला जेलों और 16 से ज्यादा सब जेलों में से 90 प्रतिशत जेलों में निर्धारित संख्या से काफी अधिक कैदियों को रखा गया है। राजस्थान जेल के रिकार्ड्स पर नजर दौड़ाई जाए तो आठ सेंटल जेलों में महिला और पुरूष कैदियों को मिलाकर मात्र 7970 कैदी रखने की क्षमता है। जबकि इस समय सेंट्रल जेलों में 12300 से भी ज्यादा ठूसें गए हैं। वहीं राज्य की 25 जिला जेलों और 17 सब जेलों में 5889 कैदी रखने की क्षमता है, इसके उलट इस समय इन जगहों पर 10100 कैदी ठूंसे गए हैं। इतना ही नहीं महिला जेल में रहने वाली कैदियों के बच्चों के बारे में आंकड़ों में जानकारी नही दी गई है।
क्यों नहीं बन रही माँ
मुंबई। बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन की बहु ऎश्वर्या बच्चन काफी समय से मां बनना चाह रही है लेकिन ऎसा नहीं हो पा रहा है । इस वजह से पूरा बच्चन परिवार काफी परेशान है। सूत्रों के मुताबिक ऎश्वर्या को पेट का टीबी है और इसके लिए ली जा रही दवाओं के कारण वह प्रेगनेंट नहीं हो पा रही हैं। बीमारी के दौरान प्रेग्नेंसी में खतरा बताया जा रहा है। ऎश्वर्या राय काफी समय से इसका इलाज भी करवा रही है। इससे पहले सोशल नेटवर्किंग साइट टि्वटर पर पति अभिषेक बच्चन ने भी उनकी बीमारी की बात कही थी, लेकिन बीमारी के संबंध में किसी तरह का खुलासा नहीं किया था। फैन्स को इतना ही बताया था कि वह धीरे धीरे ठीक हो रही हैं और जल्द फिल्मों में लौटेंगी। अपनी बात मजबूत करने के लिए उसी क्रम में अपनी नानी के जन्मदिन पर ऎश्वर्या के भोपाल जने की बात भी कही थी।
37 साल की ऎश्वर्या ने कुछ समय पहले खुद भी मां बनने की मंशा जाहिर की थी। लेकिन उन्होंने भी अपनी बीमारी की बात छिपाए रखी थी। उनकी बीमारी से बच्चन परिवार की चिंता बढ़ गई है। माना जा रहा है कि इसी कारण से कुछ समय पहले अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर अमीरों को टीबी ( द रिच मैन्स टीबी) के बारे में कुछ लिखा था। हालांकि उन्होंने भी कुछ स्पष्ट नहीं किया था, लेकिन उस ब्लॉग को ऎश्वर्या की खबर से जोड़ कर देखने से उनकी नाराजगी साफ उभर आती है। परिवार ने हालांकि सब कुछ वक्त पर छोड़ दिया है, लेकिन कब का सवाल अब भी बना हुआ है। ऎश्वर्या की उम्र ढलती जा रही है। समय जितना गुजरेगा, मां बनने में उतनी ही परेशानी आ सकती क्यूं मां नहीं बन पा रही ऎश्वर्या राय...
37 साल की ऎश्वर्या ने कुछ समय पहले खुद भी मां बनने की मंशा जाहिर की थी। लेकिन उन्होंने भी अपनी बीमारी की बात छिपाए रखी थी। उनकी बीमारी से बच्चन परिवार की चिंता बढ़ गई है। माना जा रहा है कि इसी कारण से कुछ समय पहले अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर अमीरों को टीबी ( द रिच मैन्स टीबी) के बारे में कुछ लिखा था। हालांकि उन्होंने भी कुछ स्पष्ट नहीं किया था, लेकिन उस ब्लॉग को ऎश्वर्या की खबर से जोड़ कर देखने से उनकी नाराजगी साफ उभर आती है। परिवार ने हालांकि सब कुछ वक्त पर छोड़ दिया है, लेकिन कब का सवाल अब भी बना हुआ है। ऎश्वर्या की उम्र ढलती जा रही है। समय जितना गुजरेगा, मां बनने में उतनी ही परेशानी आ सकती क्यूं मां नहीं बन पा रही ऎश्वर्या राय...
Friday, February 19, 2010
मालामाल अधीक्षण अभियंता
कोटा। गुमानपुरा पुलिस ने शुक्रवार को 54.67 लाख रूपए का "काला धन" आयकर विभाग के हवाले कर दिया। यह रकम एक जमीन के सौदे की थी, जिसे भू-स्वामी प्लास्टिक की बोरी में भरकर बैंक के लॉकर में जमा करा रहा था। पुलिस नोटों से भरी बोरी थाने ले आई, जिसे बाद में आयकर विभाग को सौंप दिया गया। थानाधिकारी भगवतसिंह हिंगड़ ने बताया कि उन्हें सूचना मिली थी कि एक व्यक्ति हवाला कारोबार से अर्जित रकम को पंजाब नेशनल बैंक की छावनी शाखा के लॉकर में जमा करा रहा है। इस पर पुलिस मौके पर पहुंची तो बीकानेर निवासी जल संसाधन विभाग के सेवानिवृत्त अधीक्षण अभियंता (मैकेनिकल) शंकरलाल वर्मा एक प्लास्टिक की बोरी में से नोट निकालकर अपने लॉकर में रख रहे थे। मौके से मिली रकम को थाने लाकर आयकर विभाग को सौंप दिया गया।1.38 करोड़ में हुआ था सौदापूछताछ में शंकरलाल वर्मा ने पुलिस को बताया कि बोरखण्डी में सेमकोर फैक्ट्री के सामने उनकी आठ बीघा जमीन है, जो वर्ष 2009 में उन्होंने एस.के. प्रोपर्टी, बोरखेड़ा के रवीन्द्र सहाय को 1.38 करोड़ में बेची थी। जमीन के पेटे 66 लाख रूपए पहले दिए जा चुके थे। वे शुक्रवार को अदा की गई 47 लाख रूपए की रकम लॉकर में जमा कराने आए थे।पुलिस ने 47 लाख और पहले से लॉकर में रखे 7.67 लाख रूपए अपने कब्जे में लेकर आयकर विभाग को सुपुर्द कर दिए।...और बेच दिए भूखण्डलॉकर में रकम जमा कराते समय शंकरलाल वर्मा के साथ मौजूद एस.के. प्रोपर्टी के साझीदार घनश्याम ने पुलिस को बताया कि उन्होंने खरीदी गई जमीन पर श्री लक्ष्मण विहार के नाम से कॉलोनी काटी है, जिसमें 88 भूखण्ड हैं, सभी बेचे जा चुके हैं। भूखण्ड खरीदने वालों से 60 हजार रूपए अग्रिम और शेष राशि तीन-तीन हजार रूपए की किश्तों में ली जा रही है। जैसे-जैसे उनके पास रकम जमा होती है, वैसे ही भू-स्वामी को दिए जा रहे हैं।कागज के टुकड़े पर सवा करोड़ से ज्यादा का सौदासवा करोड़ से ज्यादा के इस सौदे को आयकर बचाने के लिए क्रेता और विक्रेता ने महज एक कागज के टुकड़े पर तय कर लिया। पुलिस को जमीन बेचने वाले शंकरलाल वर्मा के पास से मिली फाइल में सिर्फ इकरारनामा है। इस इकरारनामे पर ही सारी लिखा-पढ़ी हुई है। वर्ष 1974 में सेवानिवृत्त हुए अधीक्षण अभियंता वर्मा वर्ष 1969 में कोटा में भी पदस्थापित रहे हैं।राजकोष में जमा होगा धनपुलिस की सूचना पर गुमानपुरा थाने पहुंचे आयकर विभाग के अधिकारियों ने बताया कि उक्त रकम को जब्त कर राजकोष में जमा कराया जाएगा। मौके पर मिली रकम और पहले हुए लेन-देन के पेटे जो भी आयकर बनेगा, वह नियमानुसार वसूला जाएगा।
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